|| जय चक्रधारी ||
लोहम,लोहा,कलायस,लोह,आयस,तीक्षणक,
लोहे से भारतीय अति प्राचीन काल से परिचित है वेदो में भी लोहे का अनेक जगहों पे वर्णन आया है।
तथा उनके विविध उपयोग बताये गए है।
वर्तमान युग को लोह युग की संज्ञा दी है।
आयुर्वेदिक सहिंताओं में विशेष कर चरक सहिंता में लोह का और भी अधिक उपयोग बताया गया है।
गुप्तकालीन युग में भारत के फौलाद लोह का बहुत नाम था इसका वर्णन कौटिल्य अर्थशास्त्र में है।
दिल्ली में लोहस्तम्भ विश्व में प्राचीन भारतीय लोह का आश्चर्यजनक एवं उत्कृष्ट नमूना है।
लोहे में जो मूल रूप से तीन प्रकार आते हैं –
१. मंद लौह |
२. तीक्ष्ण लौह |
३. कान्त लौह |
लोह भसम के गुण :-
कांत लोह भस्म सब उत्तम लोह की भस्म है।
यह भसम शरीर की काँटी को और अधिक बढाकर सुन्दर बना देती है।
यह बल,आयुष,सन्तानोपादक,जरा व्याधि नाशक,पाण्डु,कुष्ट,कृमि,प्रमेह,कफरोग,पित्तरोग,वातरोग,रक्त क्षीणता रोग नाशक है।
|| ॐ का झंडा ऊँचा रहे ||