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पुष्प कांसा , तैलीय कांसा

पुष्प कांसा - 99.9% तांबा और 99.9%रांगा के मिश्रण से तैयार होता है यह सबसे श्रेष्ठ और बहुत पवित्र धातु हैं| 

तैलीय कांसा - इसमें तांबा और रांगा के साथ सीसा को सर्वाधिक मिला देते है| जिससे उसकी शुद्धता और उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है|

पुष्प कांसा - यह कर्ण प्रिये होता है| इससे निर्मित कांसे की ध्वनि तीव्र और ऊँचे स्वर की आती हैं| 

तैलीय कांसा - इसमें ध्वनि पुष्प कांसे के मुकाबले कम आती है, तैलीय कांसा के बर्तन में भोजन करने से यह उस में विष उत्पन कर सकता है|

 

कांसे का आयुर्वेदिक महत्त्व

कांसे के बर्तन में 90% तांबा और 10% रांगा मिला होता है जिसके योग से, विशेष उपयोग(औषधीय उद्देश्यों) के लिए बनाए जाते हैं|

आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथ - चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं अष्टांग हृदय में कांसे का उपयोग औषधि के रूप में अनेक जगह उल्लेख दिया हुआ है|

कांसे के बर्तनों का सर्वाधिक उपयोग, पुराने युग में भोजन करने के लिए किया जाता था | 

पुरातन काल के मंदिरो में कांसे की घंटियाँ लगी होती है जिसकी ध्वनि बहुत ही शुद्ध होती है यह सातों चक्र को भेद कर उनको सुधारती है| 

पाँवों में बाँधे जाने वाला वाद्य यंत्र - "घुंघरू" भी कांसे के बने होते है जिसकी ध्वनि बहुत कर्ण प्रिये होते है|  


सामाजिक महत्त्व

शादी-विवाह में मेहमानों के स्वागत व कन्या के गृह प्रवेश करते समय, तिलक लगाने के लिए कांसे की थाली का प्रयोग बहुत ही शुभ माना जाता है।

घर में संतान होने पर, कांसे की थाली बजाना बहुत ही शुभ माना जाता है| 

पुराने समय में बेटी के विवाह में कांसे के बर्तन दहेज़ में दिए जाते थे माना जाता है की कांसे के बर्तन ना देने से दहेज़ या वह उपहार अधूरा  माना जाता था| 


शुद्ध कांसे के बर्तनों के लाभ :-

कांसे के बर्तन का उपयोग, पित्त और कफ़ के दोषों का नाश करता है| वात रोग वाले भी कांसे के बर्तन का प्रयोग कर सकते है| यह त्रिदोषों को संतुलित करने में मदद करता है|

कांसे के बर्तन में खाने से नेत्र ज्योति बढती है|

इसमें खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है|

यदि भोजन कांसे में रख कर परोसा जाए, तो धातु के गुण और उनकी ऊर्जाओं का संचार भोजन के माध्यम से शरीर को मिलता है|

कांसे के बर्तन में भोजन करने से उसका पोषक तत्व बना रहता है| किन्तु यह पोषक तत्व तभी मिलेगे जब आप भोजन शुद्ध धातु में पकाए जैसे - पीतल, मिट्टी, सोना, चाँदी इत्यादि| 

भोजन पकाने के लिए आप कलाई की हुई पीतल की कड़ाई का उपयोग कर सकते है| इस में पकाने से भोजन की उपयोगिता 95% बनी रहती है|

वही अगर एलुमिनियम और स्टील में भोजन को पकाते है तो उसके पोषक तत्व समाप्त हो जाते है, व कई तरह की बीमारियाँ शरीर में लगने लगती है|

कांसे के बर्तन में खाने से पेट में होने वाले कृमि रोग (पेट में कीड़े) समाप्त हो जाते है|

यह आपके तनाव को कम करने में और आत्मविश्वास हासिल करने में मदद करता है|

कांसा, हृदय रोग को ठीक करने और रक्त को शुद्ध करने में मदद करता है|

कांसे के लोटे में रात भर पानी रखने से, पानी में सूक्ष्म जीव सक्रिय नही होते, जिससे पानी बासी नही होता और जलजनित रोग जैसे - हैजा, पेचिश, डायरिया आदि से बचाव होता है और इससे इम्यूनिटी भी बढ़ती है| 



महत्वपूर्ण सूचना:- 

1. कांसे के बर्तन में सिर्फ भोजन खाया जाता है, उस में पकाया नहीं जाता हैं|

2. भोजन पकाने के लिए आप पीतल, मिट्टी, सोना, चाँदी के बर्तनों का प्रयोग कर सकते है| 

3. पीतल के बर्तन में सिर्फ भोजन पकाया जाता सकता है, लेकिन उस अवस्था में जब उसमे कलाई की गई हो |

4. कांसे को गैस पर न चढ़ाये क्योंकि वह तड़क सकता है|

5. कांसे के बर्तनों को ढक कर व इन्हें गुप्त स्थान पर रखा जाता है|  

6. कांसे के बर्तनों को मांजने के लिए गोबर की राख के साथ नींबू का उपयोग कर सकते हैं - आधे नींबू पर गोबर की राख लगा कर, उससे बर्तन को अच्छी तरह मांज कर उन्हें पानी से धो ले|